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कही वर्षो पुराना ज्वालेश्वर महादेव मंदिर, जवाली गांव का नाम जाबली ऋषि के नाम पड़ा

महाशिवरात्रि 26 काे : चाराें पहर अारती, महाअारती, शीतला सप्तमी पर भी भरता है मेला

 

पाली से उगमसिंह राजपुरोहित की खास खबर

पाली जिले के रानी उपखण्ड अंतगर्त
जवाली गांव के ज्वालेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में महाशिवरात्रि पर चाराें पहर अारती व महाअारती का अायाेजन हाेता है। हर साल शीतला सप्तमी पर मेला भी लगता है। इस मेले में आसपास के करीब 20 गांवों के लोग शामिल होते हैं। कई गांवों से गेरे भी आते हैं, जो पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं।

सैकड़ो साल पुराने इस मंदिर में उज्जैनश्वर महादेव विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां कभी जाबली ऋषि निवास करते थे। उन्हीं के नाम पर गांव का नाम जवाली पड़ा। मंदिर के दाएं ओर भी एक मंदिर स्थित है। मंदिर प्रांगण में विभिन्न समाजों के करीब एक दर्जन मंदिर बने हुए हैं। हर समाज अपने-अपने मंदिरों पर सालभर धार्मिक आयोजन करता है।

एक ही मंदिर में विभिन्न समाजों के मंदिर :
यहां सुथार समाज का विश्वकर्मा मंदिर, प्रजापत समाज का सरिया देवी मंदिर, मेघवाल समाज का बाबा रामदेव मंदिर है। इसके अलावा धोबी, मालवीय, लुहार, दर्जी, सरगरा, गोस्वामी और सैन समाज के भी मंदिर बने हुए हैं। पास में त्यागीजी बावसी स्थित है, जिसे हनुमानजी मंदिर भी कहा जाता है। ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की पूजा रावल ब्राह्मण समाज द्वारा की जाती है।

गांव के पूर्वोत्तर दिशा में रेलवे पटरी के पास भी एक मंदिर स्थित है। गांव में जांगिड़ और धोबी समाज का कोई परिवार नहीं रहता, फिर भी उनके मंदिर बने हुए हैं और हर साल धार्मिक आयोजन होते हैं। मान्यता है कि रेलवे विभाग ने मंदिर के आगे पटरी बिछाने की कोशिश की थी, लेकिन रात में पटरी उखड़ जाती थी। आखिरकार, विभाग ने मंदिर के पीछे से पटरी बिछाई, जो फिर यथावत बनी रही।

जवालेश्वर महादेव

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